Menu
blogid : 5338 postid : 47

कविता मुशायरा या जूतों की बारिश

Kavita
Kavita
  • 65 Posts
  • 43 Comments

एक कवि अपने साथी से : क्या बताएं यार आज कल कविता मुशायरे की दुनिया तो जूतों तक सिमट के रह गयी है , अरे साथी कवि तक दाद देने में तौहीन समझते हैं , बाकी जनता जनार्दन का क्या कहें शिष्ट्ता के नाम पे पूरी जोड़ी दे के मारते हैं

साथी कवि: अरे क्या यार तुम्हारा हाल तो फिर भी ठीक है ,मेरे मुशायरे में तो मेरी बारी आने तक लोगों के जूते भी ख़त्म हो जते हैं ,खाली नगमे मेरे दोस्त खाली नगमे

कवि ( थोडा खुश होके ) : अच्छा!! चलो लोग सुनते हैं तुम्हे , पर यार ये तुम्हारे पैरों में जूते नहीं दिखाई पड़ रहे

साथी कवि : कुछ देर पहले तुम्हारा मुशायरा सुन रहा था

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh