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समाज की क्या नीतियाँ होनी चाहिए,क्या दिशा होनी चाहिए इसकी समीक्षा अथवा इसे स्थापित करने के लिए समाज में कितनी जागरूकता है,अलग अलग देशों में कितनी उत्सुकता है और वैश्विक स्तर पर भी कितनी गंभीरता है ये बहुत ही विचारणीय पहलु है.
धर्म और धार्मिक भावनाएं आहत करने से रोकने के लिए समाज को एकजुट होके ये सोचना होगा की हर धर्म मानवता,भाईचारे और प्रेम की ओर प्रेरित करता है.
आज का समाज बहुत उग्र हो चला है हम देखते हैं कई देशों में लोग अलग अलग धर्म की पवित्र किताब जलाते हैं परन्तु किस लिए ये वो भी नहीं जानते
आज जाने कहाँ सद्भाव की नीतियाँ सभ्य समाज के संस्कार खोते जा रहे हैं. और इनकी वजहों को समाप्त करने की पहल भी कहीं नज़र नहीं आती.
अपने धर्म के प्रति जो पूर्णतया नहीं समर्पित है या ये कहूँ की जो मानवीयता से विमुख है वो ही दुसरे के धर्म यानि मज़हब की निंदा करता है .
आज ये बहुत ज़रूरी है की समाज और सरकार धर्म को आस्था और श्रध्हा का विषय माने इसमें शामिल बुरे लोगों को ग़लत ठहराए पर इसे यानि धर्म को नहीं.
हम देखते हैं कई खूंखार आतंकवादी संगठन निजामे मुस्तफा के नाम पर या अपने धर्म के नाम पर खून खराबा और आतंक फैलाते हैं,परन्तु कहाँ निर्दोषों का खून बहाने के लिए लिखा कोई नहीं बता सकता क्यूंकि ऐसा कोई धर्म कोई मज़हब नहीं कहता सच्चाई ये है की आतंकियों का और आतंक की मानसिकता वालों का कोई मज़हब नहीं होता
इस तरह से जब ऐसे आतंकी भारत पर हमले करते हैं तो अनायास ही लोगों के ज़हन में धर्म विशेष के प्रति उदासीनता बढती है
परन्तु समाज को देखना चाहिए की खुद मुस्लिम सम्प्रदाय आतंकियों की आलोचना करता है और ऐसे कृत्यों की भ्रत्सना करता है , समाज को सोचना चाहिए कितने आतंकी हमले पाकिस्तान में मस्जिदों में हो रहे हैं जो इस बात का सुबूत है की इनका कोई मज़हब नहीं
आतंकियों को ट्रेनिंग देने वाला ही उनके दिल ओ दिमाग में नफरत भरता है और इंसानियत से उन्हें दूर करता है,और उन्हें पैसे का लालच भी दिया जाता है जिस वजह से कई अफगानी या पाकिस्तानी युवा आतंकी संगठन में शामिल होते हैं और फिर अपने नापाक इरादों को ही जीवन का लक्ष्य समझने लगते हैं,धर्म को लेके भड़काने और बरगलाने की वजह से फिदाइन और आत्म-घाती हमले बढ़ रहे हैं. इसी वजह से एशिया के इस हिस्से और समग्र विश्व में शांति स्थिर नहीं है और भारत जैसे शांतिप्रिय देश भी आतंक का शिकार है
और इसी वजह से कई लोग धर्म को दोष देने लगते हैं और धर्म को दोषी ठहराने पर उसके सच्चे अनुयायी दुखी होते हैं. ये बहुत ज़रूरी है की हम किसी की धार्मिक भावना आहत न करें. हर धर्म को आज ज्यादा से ज्यादा खुला माहौल और लोगों के बीच में आपसी चर्चा करने की ज़रूरत है जिससे अराजक तत्त्व फायदा न उठा सकें साथ ही हम ज्यादा से ज्यादा एक दूसरे के मजहबों की दिल से इज्ज़त करें.
इसी तरह से हर धर्म के साथ ये बात जुडी है की जहाँ भी वर्ग विशेष ग़लत करता दिखाई पड़ता है उसके मज़हब को ग़लत नज़रिए से देखा जाने लगता है उसके महापुरुषों को या फिर पैगम्बरों की भी निंदा लोग कर देते हैं जो की बहुत दुखद है.
हरेक धर्म समान शिक्षाएँ देता है और कोई भी व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह अगर अपराध करता है तो उसी वक़्त वो अधार्मिक हो जाता है और अपने धर्म का भी नहीं रह जाता है इसलिए अपराधी से धर्म को जोड़ना ग़लत है और ऐसा करना भी एक आतंकी सोच को ही दर्शाता है और जो की ये भी दर्शाता है की फिर अपराधी और ऐसे लोगों में अंतर क्या ? फिर गुनेहगार और बेगुनाह में फर्क क्या?
इसलिए ये बहुत आवश्यक है की हम कभी भी किसी भी अपराध या नकारात्मक सोच के पीछे धर्म को न लायें
हर मज़हब हमे ज़ेहेनी तौर पर साफ़ होने की शिक्षा देता है हर मज़हब हमे अमन और शांति बढाने के लिए कहता है.
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