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भावना का समुन्दर कैसा प्रबल होता है
कभी लहरों से खेलता
कभी चुपचाप
कभी बातें करता
कभी अपनी ही सुनता
कभी दुसरे समुन्दर को भी समाहित करता हुआ सा
कभी तो फूटे तो लगता सब फूटा हुआ सा
आदमी जान नहीं पाता
और कभी तो पहचान नहीं पाता
की उसे समुन्दर के वश में होना है या समुन्दर को उसके
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